BA Semester-5 Paper-1 Sanskrit - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 संस्कृत - वैदिक वाङ्मय एवं भारतीय दर्शन - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 संस्कृत - वैदिक वाङ्मय एवं भारतीय दर्शन

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2801
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 संस्कृत - वैदिक वाङ्मय एवं भारतीय दर्शन - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषताओं की व्याख्या कीजिये।

उत्तर -

भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषताएँ - भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषताओं का अध्ययन करने के लिए भारत के दार्शनिक सम्प्रदायों की चर्चा करना आवश्यक है। दार्शनिक सम्प्रदायों को सामान्यतः आस्तिक और नास्तिक दो वर्गों में विभाजित किया गया है। वेद को प्रामाणिक मानने वाले दर्शन को आस्तिक तथा वेद को अप्रामाणिक मानने वाले दर्शन को 'नास्तिक' कहा जाता है। आस्तिक दर्शन छः हैं जिन्हें न्याय, वैशेषिक, सांख्य, योग, मीमांसा और वेदान्त कहा जाता है। इसके विपरीत चार्वाक बौद्ध और जैन दर्शनों को 'नास्तिक दर्शन' के वर्ग में रखा जाता है। इन दर्शनों में अत्यधिक आपसी विभिन्नता है। किन्तु कुछ दार्शनिक मतभेदों के बाद भी इन दर्शनों में सर्वनिष्ठता का पुट है। कुछ सिद्धान्तों की प्रामाणिकता प्रत्येक दर्शन में उपलब्ध है। इस साम्य का कारण प्रत्येक दर्शन का विकास एक ही भूमि भारत में हुआ कहा जा सकता है। एक ही देश में पनपने के कारण इन दर्शनों पर भारतीय प्रतिभा, निष्ठा और संस्कृति की छाप अमिट रूप से पड़ गई है। इस प्रकार भारत के विभिन्न दर्शनों में जो साम्य दिखाई पड़ते हैं उन्हें "भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषताएँ" कहा जाता है। ये विशेषताएँ भारतीय विचारधारा के स्वरूप को पूर्णतः प्रकाशित करने में समर्थ हैं। इसलिए इन विशेषताओं का भारतीय दर्शन में अत्यधिक महत्व है। अब हम भारतीय दर्शन की एक-एक विशेषताओं का उल्लेख करेंगे।

१. जीवन के प्रति निश्चित दृष्टिकोण - पश्चिम विचारकों के लिए दर्शन एक मानसिक व्यायाम मात्र है। वहाँ दर्शन की उत्पत्ति मानव जिज्ञासा की शांति के लिए होती है। परन्तु भारतीय दर्शन को केवल मानसिक कसरत नहीं कहा जा सकता। इसका व्यावहारिक पक्ष इसके सैद्धांतिक पक्ष से अधिक सबल है। यह जीवन के अत्यन्त समीप है। बुद्धि को संतुष्ट करना ही इसका लक्ष्य नहीं है, बल्कि ज्ञान के प्रकाश में जीवन को सुव्यवस्थित बनाना इसका मुख्य उद्देश्य है। जीवन की समस्याओं का समाधान ढूँढना भारतीय विचारक अपना पवित्र कर्त्तव्य मानते हैं। इस प्रकार, भारतीय दर्शन का दृष्टिकोण व्यावहारिक है।

२. भारतीय दर्शन की उत्पत्ति आध्यात्मिक असंतोष के कारण होती है - संसार में दुःख एवं बुराई का साम्राज्य पाकर भारतीय विचारक एक प्रकार के आध्यात्मिक असंतोष का अनुभव करते है और फलस्वरूप उनका दार्शनिक चिंतन आरंभ होता है। भारतीय विचारकों का प्रधान लक्ष्य मानव को दुःखों से मुक्त करना है। महात्मा बुद्ध ने अपने दर्शन में दुःख का विशद वर्णन किया है। इनके चार आर्यसत्य दुःख के विचार पर ही आधारित हैं-

(i) दुःख है, (ii) दुःख का कारण है, (iii) दुःख निरोध संभव है और (iv) दुःख निरोध का मार्ग है।

इसी तरह अन्य भारतीय दर्शन भी दुःख के भावों से ओत-प्रोत है। कुछ आलोचक भारतीय दर्शन में दुःखों का विशद वर्णन पाकर इसे निराशावादी कहते हैं। किन्तु यह आपेक्ष गलत है। भारतीय दर्शन का प्रारम्भ भले ही निराशावाद से होता हो, परन्तु इसका अन्त आशावाद में होता है। इसलिए भारतीय दर्शन को निराशावादी नहीं कहा जा सकता।

३. संसार को एक नैतिक रंगमंच मानना - प्रायः सभी भारतीय दार्शनिक संसार को एक रंगमंच मानते हैं। मनुष्य अपने अतीत कर्म के अनुसार ईश्वर या प्रकृति की ओर से शरीर, इंद्रिय एवं वातावरण प्राप्त करके विश्वरूपी रंगमंच पर उपस्थित होता है, जिस प्रकार किसी रंगमंच पर पात्र विभिन्न वस्त्रों में सज-धजकर अपना पार्ट अदा करते हैं और उसके बाद रंगमंच से अलग हो जाते हैं, ठीक उसी प्रकार विश्वव्यापी मंच पर भी विभिन्न प्राणी अपने कर्मों का प्रभाव दिखाकर विदा हो जाते हैं। प्राणियों को अच्छे कर्मों द्वारा विश्व रंगमंच का सफल अभिनेता बनने का प्रयास करना चाहिए। जिस प्रकार साधारण रंगमंच पर पुराने पात्र स्थान खाली करते जाते हैं और नए पात्र उनके स्थान पर आते रहते हैं, उसी प्रकार विश्व भी एक ऐसा मंच है, जहाँ पुराने और नए चेहरे सदैव आते-जाते रहते हैं।

४. संसार की शाश्वत नैतिक व्यवस्था में विश्वास - संसार में एक शाश्वत नैतिक व्यवस्था का समर्थन प्रायः सभी भारतीय विचारक करते हैं। इस जगत में जो भी कर्म हम करते है, उसका फल हमें निश्चित रूप से मिलता है। अच्छे कर्मों के लिए पुरस्कार और बुरे कर्मों के लिए दंड का भागीदार हमें होना पड़ता है। यही कर्म-सिद्धान्त है। इस सिद्धान्त के अनुसार हमारा वर्तमान जीवन हमारे अतीत जीवन का फल है, एवं भावी जीवन की आधारशिला हमारे वर्तमान जीवन कर्मों पर आधारित है। जिस प्रकार भौतिक जगत की व्यवस्था की व्याख्या कार्य-कारण नियम के आधार पर की जाती है, उसी प्रकार नैतिक जगत की व्यवस्था की व्याख्या कर्म सिद्धान्त द्वारा ही संभव हैं। न्यायदर्शन के अनुसार कर्म - सिद्धान्त का नियंत्रण ईश्वर द्वारा होता है। ईश्वर ही व्यक्ति को उसके कर्मानुसार सुख या दुःख प्रदान करता है। जैन, बौद्ध, सांख्य, मीमांसा आदि दर्शन कर्म सिद्धान्तं को ईश्वर के नियंत्रण से स्वतंत्र मानते हैं। फिर भी कर्म- सिद्धान्त का समर्थन संपूर्ण भारतीय दर्शन की ओर से किया गया है। यह सिद्धान्त आशावाद का संचार करता है।

५. आत्मा के आस्तित्व में विश्वास - चार्वाक और बौद्ध को छोड़कर संपूर्ण भारतीय दर्शन आत्मा की सत्ता में अखंड विश्वास रखता है। यहाँ आत्मा को शरीर से भिन्न एक आध्यात्मिक सत्ता कहा गया है। यह नित्य एवं अविनाशी है। भारतीय दार्शनिक तत्वज्ञान के लिए आत्मज्ञान को आवश्यक बताते हैं। शंकर ने तो आत्मज्ञान को ही ब्रह्मज्ञान माना है। इस प्रकार, प्रायः संपूर्ण भारतीय दर्शन आत्मा को एक नित्य, अविनाशी, आध्यात्मिक सत्ता के रूप में स्वीकार करता है।

६. अज्ञान दुःख एवं बंधन को उत्पन्न करता है और ज्ञान से मोक्ष मिलता है - भारतीय दर्शन में अज्ञान को बंधन और दुःख का कारण बताया गया है। जन्म-मरण एवं पुर्नजन्म के चक्कर में पड़कर दुःख झेलना ही बंधन है। जन्म पुर्नजन्म के जाल से मुक्त हो जाना ही मोक्ष कहलाता है। प्रायः सभी भारतीय दार्शनिक अज्ञानता को दुःखों की जननी मानते हैं। बुद्ध ने अज्ञान को दुःखों का मूल कारण बताया है। शंकर के अनुसार भी व्यक्ति अज्ञानवश आत्मा और ईश्वर में द्वैत मानकर बंधनग्रस्त होता है। इन सभी विचारकों ने बंधन एवं दुःख दूर करने का प्रमुख साधन ज्ञान को बताया गया है।

७. आत्मनियंत्रण एवं एकाग्रचिंतन पर जोर - मानव को मोक्ष प्राप्त करने के लिए अपने मस्तिष्क से बुरे विचारों को निष्कासित करके उत्तम विचारों को प्रतिष्ठित करना एवं आत्मसंयम रखना भी अनिवार्य माना गया है। मस्तिष्क से दूषित भावनाओं को समूल नष्ट करने के लिए एकाग्रचिंतन आवश्यक है। इसके लिए प्रायः सभी भारतीय दर्शनों में 'योग' की महत्ता स्वीकार की गई है। बुरे विचारों से मुक्ति दिलाकर उत्तम विचारों को मस्तिष्क में भरने में योग महत्वपूर्ण कार्य करता है।

एकाग्रचितंन के साथ-साथ आत्मसंयम भी मोक्ष के लिए आवश्यक माना गया हैं। इंद्रियों पर नियंत्रण रखकर ही हम वासनाओं, तृष्णाओं, राग-द्वेष एवं अन्य तुच्छ प्रवृत्तियों को अपने वश में रख सकते हैं। चार्वाक के सिवा अन्य भारतीय विचारकों ने आत्मनियंत्रण को अत्यधिक महत्वपूर्ण बताया है। आत्मसंयम पर अत्यधिक जोर देने के कारण कुछ आलोचक भारतीय दर्शन पर आत्मनिग्रह एवं सन्यास का आक्षेप लगाते हैं, किन्तु यह आक्षेप निराधार हैं।

८. जीवन का चरम लक्ष्य मोक्ष प्राप्ति है - चार्वाक के अतिरिक्त संपूर्ण भारतीय दर्शन मोक्ष को ही जीवन का चरम लक्ष्य मानता है। दुःखरहित अवस्था को ही मोक्ष कहते हैं। कुछ अन्य विचारकों ने इसे आनंदमय अवस्था बताया है। इस प्रकार मोक्ष के दो पक्ष हैं-

निषेधात्मक पक्ष और भावात्मक पक्ष। निषेधात्मक रूप से मोक्ष दुःखरहित अवस्था है और भावात्मक रूप से यह आनंदमयी अवस्था है। मोक्ष दो प्रकार के होते हैं जीवन्मुक्त और विदेहमुक्ति। शरीर धारण करते हुए इसी जीवन में मुक्त हो जाना जीवन्मुक्ति है। मृत्यु के बाद शरीर छोड़कर मुक्ति पाना ही 'विदेहमुक्ति' है। मोक्ष को निर्वाण कैवल्य आदि विभिन्न नामों से पुकारा जाता है। भारतीय दर्शन ज्ञान को मोक्ष का एक साधन मानता है। मोक्ष सर्वोच्च साध्य है। यह किसी अन्य साध्य का साधन नहीं हो सकता।

मोक्ष को सर्वोच्च साध्य मानने के कारण कुछ आलोचक यह आक्षेप करते हैं कि भारतीय दर्शन में व्यावहारिक पक्ष पर अत्यधिक जोर दिया गया है और सैद्धांतिक पक्ष की अवहेलना की गई है। यह आक्षेप निराधार है। भारतीय दर्शन एक ओर 'जीने का एक ढंग' या 'जीवन की एक पद्धति है तो दूसरी ओर इसमें तत्वमीमांसा, प्रमाणशास्त्र, तर्कशास्त्र आदि विषयों का विशद विवेचन भी पाया जाता है। इस प्रकार भारतीय दर्शन के सैद्धांतिक और व्यावहारिक दोनों ही पक्ष काफी सबल हैं।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- वेद के ब्राह्मणों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  2. प्रश्न- ऋग्वेद के वर्ण्य विषय का विवेचन कीजिए।
  3. प्रश्न- किसी एक उपनिषद का सारांश लिखिए।
  4. प्रश्न- ब्राह्मण साहित्य का परिचय देते हुए, ब्राह्मणों के प्रतिपाद्य विषय का विवेचन कीजिए।
  5. प्रश्न- 'वेदाङ्ग' पर एक निबन्ध लिखिए।
  6. प्रश्न- शतपथ ब्राह्मण पर एक निबन्ध लिखिए।
  7. प्रश्न- उपनिषद् से क्या अभिप्राय है? प्रमुख उपनिषदों का संक्षेप में विवेचन कीजिए।
  8. प्रश्न- संहिता पर प्रकाश डालिए।
  9. प्रश्न- वेद से क्या अभिप्राय है? विवेचन कीजिए।
  10. प्रश्न- उपनिषदों के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  11. प्रश्न- ऋक् के अर्थ को बताते हुए ऋक्वेद का विभाजन कीजिए।
  12. प्रश्न- ऋग्वेद का महत्व समझाइए।
  13. प्रश्न- शतपथ ब्राह्मण के आधार पर 'वाङ्मनस् आख्यान् का महत्व प्रतिपादित कीजिए।
  14. प्रश्न- उपनिषद् का अर्थ बताते हुए उसका दार्शनिक विवेचन कीजिए।
  15. प्रश्न- आरण्यक ग्रन्थों पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  16. प्रश्न- ब्राह्मण-ग्रन्थ का अति संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  17. प्रश्न- आरण्यक का सामान्य परिचय दीजिए।
  18. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए।
  19. प्रश्न- देवता पर विस्तृत प्रकाश डालिए।
  20. प्रश्न- निम्नलिखित सूक्तों में से किसी एक सूक्त के देवता, ऋषि एवं स्वरूप बताइए- (क) विश्वेदेवा सूक्त, (ग) इन्द्र सूक्त, (ख) विष्णु सूक्त, (घ) हिरण्यगर्भ सूक्त।
  21. प्रश्न- हिरण्यगर्भ सूक्त में स्वीकृत परमसत्ता के महत्व को स्थापित कीजिए
  22. प्रश्न- पुरुष सूक्त और हिरण्यगर्भ सूक्त के दार्शनिक तत्व की तुलना कीजिए।
  23. प्रश्न- वैदिक पदों का वर्णन कीजिए।
  24. प्रश्न- 'वाक् सूक्त शिवसंकल्प सूक्त' पृथ्वीसूक्त एवं हिरण्य गर्भ सूक्त की 'तात्त्विक' विवेचना कीजिए।
  25. प्रश्न- हिरण्यगर्भ सूक्त की विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
  26. प्रश्न- हिरण्यगर्भ सूक्त में प्रयुक्त "कस्मै देवाय हविषा विधेम से क्या तात्पर्य है?
  27. प्रश्न- वाक् सूक्त का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
  28. प्रश्न- वाक् सूक्त अथवा पृथ्वी सूक्त का प्रतिपाद्य विषय स्पष्ट कीजिए।
  29. प्रश्न- वाक् सूक्त में वर्णित् वाक् के कार्यों का उल्लेख कीजिए।
  30. प्रश्न- वाक् सूक्त किस वेद से सम्बन्ध रखता है?
  31. प्रश्न- पुरुष सूक्त में किसका वर्णन है?
  32. प्रश्न- वाक्सूक्त के आधार पर वाक् देवी का स्वरूप निर्धारित करते हुए उसकी महत्ता का प्रतिपादन कीजिए।
  33. प्रश्न- पुरुष सूक्त का वर्ण्य विषय लिखिए।
  34. प्रश्न- पुरुष सूक्त का ऋषि और देवता का नाम लिखिए।
  35. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। शिवसंकल्प सूक्त
  36. प्रश्न- 'शिवसंकल्प सूक्त' किस वेद से संकलित हैं।
  37. प्रश्न- मन की शक्ति का निरूपण 'शिवसंकल्प सूक्त' के आलोक में कीजिए।
  38. प्रश्न- शिवसंकल्प सूक्त में पठित मन्त्रों की संख्या बताकर देवता का भी नाम बताइए।
  39. प्रश्न- निम्नलिखित मन्त्र में देवता तथा छन्द लिखिए।
  40. प्रश्न- यजुर्वेद में कितने अध्याय हैं?
  41. प्रश्न- शिवसंकल्प सूक्त के देवता तथा ऋषि लिखिए।
  42. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। पृथ्वी सूक्त, विष्णु सूक्त एवं सामंनस्य सूक्त
  43. प्रश्न- पृथ्वी सूक्त में वर्णित पृथ्वी की उपकारिणी एवं दानशीला प्रवृत्ति का वर्णन कीजिए।
  44. प्रश्न- पृथ्वी की उत्पत्ति एवं उसके प्राकृतिक रूप का वर्णन पृथ्वी सूक्त के आधार पर कीजिए।
  45. प्रश्न- पृथ्वी सूक्त किस वेद से सम्बन्ध रखता है?
  46. प्रश्न- विष्णु के स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  47. प्रश्न- विष्णु सूक्त का सार लिखिये।
  48. प्रश्न- सामनस्यम् पर टिप्पणी लिखिए।
  49. प्रश्न- सामनस्य सूक्त पर प्रकाश डालिए।
  50. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। ईशावास्योपनिषद्
  51. प्रश्न- ईश उपनिषद् का सिद्धान्त बताते हुए इसका मूल्यांकन कीजिए।
  52. प्रश्न- 'ईशावास्योपनिषद्' के अनुसार सम्भूति और विनाश का अन्तर स्पष्ट कीजिए तथा विद्या अविद्या का परिचय दीजिए।
  53. प्रश्न- वैदिक वाङ्मय में उपनिषदों का महत्व वर्णित कीजिए।
  54. प्रश्न- ईशावास्योपनिषद् के प्रथम मन्त्र का भावार्थ स्पष्ट कीजिए।
  55. प्रश्न- ईशावास्योपनिषद् के अनुसार सौ वर्षों तक जीने की इच्छा करने का मार्ग क्या है।
  56. प्रश्न- असुरों के प्रसिद्ध लोकों के विषय में प्रकाश डालिए।
  57. प्रश्न- परमेश्वर के विषय में ईशावास्योपनिषद् का क्या मत है?
  58. प्रश्न- किस प्रकार का व्यक्ति किसी से घृणा नहीं करता? .
  59. प्रश्न- ईश्वर के ज्ञाता व्यक्ति की स्थिति बतलाइए।
  60. प्रश्न- विद्या एवं अविद्या में क्या अन्तर है?
  61. प्रश्न- विद्या एवं अविद्या (ज्ञान एवं कर्म) को समझने का परिणाम क्या है?
  62. प्रश्न- सम्भूति एवं असम्भूति क्या है? इसका परिणाम बताइए।
  63. प्रश्न- साधक परमेश्वर से उसकी प्राप्ति के लिए क्या प्रार्थना करता है?
  64. प्रश्न- ईशावास्योपनिषद् का वर्ण्य विषय क्या है?
  65. प्रश्न- भारतीय दर्शन का अर्थ बताइये व भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषतायें बताइये।
  66. प्रश्न- भारतीय दर्शन की आध्यात्मिक पृष्ठभूमि क्या है तथा भारत के कुछ प्रमुख दार्शनिक सम्प्रदाय कौन-कौन से हैं? भारतीय दर्शन का अर्थ एवं सामान्य विशेषतायें बताइये।
  67. प्रश्न- भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषताओं की व्याख्या कीजिये।
  68. प्रश्न- भारतीय दर्शन एवं उसके भेद का परिचय दीजिए।
  69. प्रश्न- चार्वाक दर्शन किसे कहते हैं? चार्वाक दर्शन में प्रमाण पर विचार दीजिए।
  70. प्रश्न- जैन दर्शन का नया विचार प्रस्तुत कीजिए तथा जैन स्याद्वाद की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  71. प्रश्न- बौद्ध दर्शन से क्या अभिप्राय है? बौद्ध धर्म के साहित्य तथा प्रधान शाखाओं के विषय में बताइये तथा बुद्ध के उपदेशों में चार आर्य सत्य क्या हैं?
  72. प्रश्न- चार्वाक दर्शन का आलोचनात्मक विवरण दीजिए।
  73. प्रश्न- जैन दर्शन का सामान्य स्वरूप बताइए।
  74. प्रश्न- क्या बौद्धदर्शन निराशावादी है?
  75. प्रश्न- भारतीय दर्शन के नास्तिक स्कूलों का परिचय दीजिए।
  76. प्रश्न- विविध दर्शनों के अनुसार सृष्टि के विषय पर प्रकाश डालिए।
  77. प्रश्न- तर्क-प्रधान न्याय दर्शन का विवेचन कीजिए।
  78. प्रश्न- योग दर्शन से क्या अभिप्राय है? पतंजलि ने योग को कितने प्रकार बताये हैं?
  79. प्रश्न- योग दर्शन की व्याख्या कीजिए।
  80. प्रश्न- मीमांसा का क्या अर्थ है? जैमिनी सूत्र क्या है तथा ज्ञान का स्वरूप और उसको प्राप्त करने के साधन बताइए।
  81. प्रश्न- सांख्य दर्शन में ईश्वर पर प्रकाश डालिए।
  82. प्रश्न- षड्दर्शन के नामोल्लेखपूर्वक किसी एक दर्शन का लघु परिचय दीजिए।
  83. प्रश्न- आस्तिक दर्शन के प्रमुख स्कूलों का परिचय दीजिए।
  84. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। श्रीमद्भगवतगीता : द्वितीय अध्याय
  85. प्रश्न- श्रीमद्भगवद्गीता' द्वितीय अध्याय के अनुसार आत्मा का स्वरूप निर्धारित कीजिए।
  86. प्रश्न- 'श्रीमद्भगवद्गीता' द्वितीय अध्याय के आधार पर कर्म का क्या सिद्धान्त बताया गया है?
  87. प्रश्न- श्रीमद्भगवद्गीता द्वितीय अध्याय के आधार पर श्रीकृष्ण का चरित्र-चित्रण कीजिए?
  88. प्रश्न- श्रीमद्भगवद्गीता के द्वितीय अध्याय का सारांश लिखिए।
  89. प्रश्न- श्रीमद्भगवद्गीता को कितने अध्यायों में बाँटा गया है? इसके नाम लिखिए।
  90. प्रश्न- महर्षि वेदव्यास का परिचय दीजिए।
  91. प्रश्न- श्रीमद्भगवद्गीता का प्रतिपाद्य विषय लिखिए।
  92. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। तर्कसंग्रह ( आरम्भ से प्रत्यक्ष खण्ड)
  93. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या एवं पदार्थोद्देश निरूपण कीजिए।
  94. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या एवं द्रव्य निरूपण कीजिए।
  95. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या एवं गुण निरूपण कीजिए।
  96. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या एवं प्रत्यक्ष प्रमाण निरूपण कीजिए।
  97. प्रश्न- अन्नम्भट्ट कृत तर्कसंग्रह का सामान्य परिचय दीजिए।
  98. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन एवं उसकी परम्परा का विवेचन कीजिए।
  99. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन के पदार्थों का विवेचन कीजिए।
  100. प्रश्न- न्याय दर्शन के अनुसार प्रत्यक्ष प्रमाण को समझाइये।
  101. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन के आधार पर 'गुणों' का स्वरूप प्रस्तुत कीजिए।
  102. प्रश्न- न्याय तथा वैशेषिक की सम्मिलित परम्परा का वर्णन कीजिए।
  103. प्रश्न- न्याय-वैशेषिक के प्रकरण ग्रन्थ का विवेचन कीजिए॥
  104. प्रश्न- न्याय दर्शन के अनुसार अनुमान प्रमाण की विवेचना कीजिए।
  105. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। तर्कसंग्रह ( अनुमान से समाप्ति पर्यन्त )
  106. प्रश्न- 'तर्कसंग्रह ' अन्नंभट्ट के अनुसार अनुमान प्रमाण की विस्तृत व्याख्या कीजिए।
  107. प्रश्न- तर्कसंग्रह के अनुसार उपमान प्रमाण क्या है?
  108. प्रश्न- शब्द प्रमाण को आचार्य अन्नम्भट्ट ने किस प्रकार परिभाषित किया है? विस्तृत रूप से समझाइये।

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